केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत पूजा के लिए मंदिर में प्रवेश करने का मौलिक अधिकार हिंदू समुदाय के किसी भी व्यक्ति को है. कोर्ट ने कहा है कि वह उसे पुजारी की भूमिका निभाने का अधिकार नहीं देता है. न्यायमूर्ति अनिल के नरेंद्रन और न्यायमूर्ति पी जी अजित कुमार की खंडपीठ ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25(2)(बी) के तहत पूजा करने का अधिकार पूर्ण नहीं है और उदाहरण के लिए कोई भक्त यह दावा नहीं कर सकता कि मंदिर को 24 घंटे खुला रखा जाना चाहिए.
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि भक्त यह दावा नहीं कर सकता कि उसे अनुष्ठान करने की अनुमति दी जानी चाहिए, जो केवल पुजारी ही कर सकते हैं. हाईकोर्ट ने त्रावणकोर देवासम बोर्ड द्वारा जारी एक अधिसूचना को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें कहा गया था कि सबरीमाला अयप्पा मंदिर के मेलशांति (उच्च पुजारी) के पद के लिए आवेदन करने वाला उम्मीदवार मलयाला ब्राह्मण समुदाय से होना चाहिए.
क्या है पूरा मामला
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि मलयाला ब्राह्मण के पास कोई विशेष विशेषाधिकार नहीं है और ऐसे प्रतिबंध मनमाने और अवैध हैं और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 17 का उल्लंघन है. अदित्यन बनाम त्रावणकोर देवासम बोर्ड (2002) केस का हवाला देते हुए यह तर्क दिया गया कि नियुक्ति जाति या वंशावली या किसी अन्य मानदंड के आधार पर नहीं होनी चाहिए. सेशम्मल बनाम तमिलनाडु राज्य (1972) केस का हवाला देते हुए कहा है कि यह प्रस्तुत किया गया था कि ऐसा कोई कानून नहीं था जो यह कहता हो कि ऐसी नियुक्तियां वंशानुगत उत्तराधिकार के उपयोग द्वारा शासित होंगी. उनका मानना है कि जब तक लोग पूरी तरह से पारंगत थे, योग्य पूजा करते थे, कर्तव्यों, मंत्रों, तंत्रों, आवश्यक वेदों में प्रशिक्षित थे, चाहे उनकी जाति कुछ भी हो, अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धर्म की स्वतंत्रता का कोई उल्लंघन नहीं था.
दूसरी ओर, त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड और देवस्वोम आयुक्त ने दलील दी कि चयन प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई फैसलों और निर्देशों का पालन किया जाता है. उन्होंने कहा कि मेलसैंथीज की नियुक्ति जाति-आधारित चयन या सार्वजनिक रोजगार का मामला नहीं था, बल्कि प्राचीन काल से एक धार्मिक प्रथा थी और इस प्रकार भेदभाव का आरोप नहीं लगाया जा सकता. इसमें कहा गया है कि यह धार्मिक अभ्यास का मामला है. केरल देवास्वोम भर्ती बोर्ड अधिनियम 2015 और उसके तहत बनाए गए नियम लागू नहीं होंगे और मंदिर के तंत्री की राय अंतिम और बाध्यकारी थी.
हाईकोर्ट ने क्या ?
हाईकोर्ट ने कहा कि मंदिर में पूजा और धार्मिक समारोह आयोजित करने के लिए मंदिर के पुजारी जिम्मेदार थे. इसमें कहा गया है कि पूजा और समारोह आयोजित करने के लिए जिम्मेदार पुजारियों को रिट याचिकाओं में एक पक्ष नहीं बनाया गया. इसमें कहा गया है कि त्रावणकोर देवासम बोर्ड के सदस्यों के कर्तव्य पूरी तरह से प्रशासनिक प्रकृति के थे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि धार्मिक संस्कारों, परंपराओं का मान्यता प्राप्त उपयोग के अनुसार पालन किया जाए और वे देवस्वोम के धार्मिक मामलों को न छूएं. कोर्ट ने कहा कि हमें इस तर्क में कोई दम नहीं दिखता कि राजस्व (देवस्वोम) विभाग के माध्यम से केरल राज्य का सबरीमाला देवस्वोम और मलिकप्पुरम देवस्वोम पर प्रशासनिक नियंत्रण है और त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड पूरी तरह से राज्य द्वारा नियंत्रित है.
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Tags: Hindu, Kerala High Court
FIRST PUBLISHED : February 29, 2024, 14:53 IST